भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों ने मानक उपचार कार्य प्रवाह (एसटीडब्ल्यू) तैयार कर डॉक्टरों को भेजा है। मधुमेह रोगी को उच्चस्तरीय अस्पताल में रेफर करने के भी मानक हैं।
मधुमेह के रोगियों में रोग की पहचान होने के पांच वर्ष बाद आंखों की जांच अनिवार्य होगी। स्वास्थ्य महानिदेशालय ने देशभर के डॉक्टरों के साथ टाइप-1 मधुमेह रोगियों के उपचार का प्रोटोकॉल साझा किया है। इसमें नए-पुराने मधुमेह मरीजों में बीमारी के प्रबंधन की जानकारी दी है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों ने मानक उपचार कार्य प्रवाह (एसटीडब्ल्यू) तैयार कर डॉक्टरों को भेजा है। मधुमेह रोगी को उच्चस्तरीय अस्पताल में रेफर करने के भी मानक हैं। इसके तहत, अनियंत्रित हाइपग्लाइसीमिया की स्थिति में मरीज रेफर किया जा सकता है। यह तब होता है, जब रोगी के रक्त में बहुत अधिक शर्करा (ग्लूकोज) हो।
इसके अलावा, मरीज या उसके परिवार को इंसुलिन लेने का प्रशिक्षण देने, क्रोनिक मधुमेह, घर पर निगरानी के तौर-तरीके बताने और गंभीर मधुमेह कीटोएसिडोसिस (डीकेए) की स्थिति में मरीज को रेफर किया जा सकता है।
अब ये जांचें होंगी अनिवार्य:
नए निर्देशों के अनुसार, मधुमेह का पता चलने के पांच वर्ष बाद जब मरीज चिकित्सकीय सलाह लेने आए तो उसकी फंडोस्कोपी (रेटिना की जांच), यूरिन, क्रिएटिनिन अनुपात, थायराइड की टीएसएच जांच और लिपिड प्रोफाइल (रक्त जांच) करवाना अनिवार्य होगा। इन जांचों के जरिये यह पता लगाना आसान है कि मधुमेह ने पांच साल में मरीज को कितना और क्या नुकसान पहुंचाया है।